सामाजिक बदलाव और शिक्षा

Mihir Pathak
6 min readDec 6, 2021

पिछले कई सालो से बच्चों के साथ काम कर रहा हूँ । कोई कहेता है में सामाजिक क्षेत्र में काम करता हूँ । अब सामाजिक क्षेत्र में हो तो फिर सामजीक बदलाव की बात तो आएगी ।

केपटलिस्ट सोसाइटी , ग़रीबों का शोषण, anti establishment, आंदोलन, ओप्रेसर — ओप्रेसड, ट्राइबल राइट्स , एनिमल राइट्स , ह्यूमन राइट्स

हमें आवाज़ उठनी चाहिए । लेफ़्टिस्ट , राइट विंग , बायस , फ़ेमिनिजम , कास्ट — क्लास — क्रिड , आरक्षण , सोशलिस्ट , कोमयूनिस्ट , आम्बेडकराइट , भक्त

कही ना कही ये सारे शब्द कानो से टकरा जाते है । में ज़्यादातर समय इनको अनदेखा करता था। सोचता था मेरा इससे कोई वास्ता नहीं है । में तो बच्चों के साथ काम करने वाला शिक्षक हूँ । मुझे बच्चे कैसे सीखते है । बच्चों को समवेदंशील कैसे बनाया जाए , सर्जनात्मक और आलोचनात्मक तरीक़े से सोचना कैसे सिखाया जा सकता है उसकी योजना बनानी चाहिए ।

बच्चे डर और कंडीशनिंग से मुक्त हो कर जजमेंट लेना सीखे उस पे काम करना चाहिए । बच्चे जीवन को एक सुग्रंथित तरीक़े से देखना सीखे और चीजें, लोग और दर्शन के साथ सही तरीक़े के रिश्ते बना पाए ये मेरा मक्षद होना चाहिए। अगर इस तरह की शिक्षा मिली तो बच्चे समाज में harmony के साथ जी पाएँगे ।

पर पिछले कुछ समय में एसी संस्थाओ और लोगों से मुलाक़ात हुई जिन्होंने मुझे ये सोचने पे मजबूर कर दिया के में सामाजिक बदलाव के बरेमे क्या मानता हूँ ?

शिक्षा के साथ बहोत सारी चीजें जुड़ी है जैसे की टेक्स्टबुक में क्या पढ़ाया जाता है । कोंटेंट क्या है । कौनसी भाषा में पढ़ाया जाता है । जेंडर के बरेमे किस तरह से बात की गई है । कोई आइडीयोलोजि तो नहीं थोपी जा रही ना !

पावर में कौन है , पावर डायनमिक्स क्या चल रहा है । उससे बच्चों पे क्या असर हो रही है । एसी बहोत सारी छोटी छोटी चीजें एक दूसरे के साथ कैसे क्रिया — प्रतिक्रिया करती है उस चीजें से शिक्षा का पूरा चित्र बनता है और शिक्षा और सामाजिक बदलाव जुड़े हुए है । शिक्षा को सामाजिक बदलाव का साधन माना गया है ।

इसीलिए कुछ संस्थाए पाठ्यपुस्तक का कोंटेंट बदलवाने में या कारिक्यूलम बदलवाने में काफ़ी काम कर रही है । उनको लगता है की कोई एक तरफ़ की बात पाठपुस्तको में नहीं रखनी चाहिए ।

कोई विचारधारा बच्चों पे थोपनी नहीं चाहिए । पोलिसि और दूसरी काफ़ी सारी चीजों में बदलाव के द्वारा ये सुनिस्चित किया जाता है की कुछ एक तरफ़ ना हो । पर फ़ोकस में सामाजिक बदलाव रहेता है । एक आइडीयोलोजि रहेती है । एक आदर्श समाज का चित्र रहेता है । Just and equal society.

इस चित्र को साकार करने के लिए अगर आंदोलन करना पड़े, पाठपुस्तक बदलना पड़े, पोलिसि बदलनी पड़े वो सब कुछ किया जाएगा ।

ये सारे आयाम बेहत ज़रूरी है । में जिस आयाम पे काम करना चाहता हूँ वो में यहाँ लिखने की कोशिश कर रहा हूँ ।

https://www.instagram.com/tv/CT7Qubio8Wf/?utm_source=ig_web_copy_link

ऊपर के दो विडियो को मेने रेफ़्रंस लिया है तो आगे पढ़ने से पहेले ये दो विडियो देख लेना उपयोगी रहेगा ।

जीवन, मृत्यु के तोफ़े के साथ आता है । पर जीवन ने अपनी कोपी बनाना सिख लिया है ।

वो अपनी कोपी में इवोल्यूशन में सीखी गई सारी चीजें डालता है । हमारे जिन में सरवाइवल के लिए उपलब्ध सारी जानकारी है ।

अब कुछ चीजें एसी है जिस की ज़रूर हमें कुछ जगहों पे नहि पड़ती । जैसे की दर्द । जब हम सर्जरी करते है जो उस परिस्थिति में हमें ज़िंदा रखने के लिए ज़रूरी है तब दर्द को कुछ देर के लिए बांध करना पड़ता है । anesthesia दिया जाता है ।

इस तरह हमारे दूसरे कई सारे natural instinct है जिस को क्योर करना ज़रूरी है । तब ही हम हम साथ में रह पाएँगे । इस लिए इंसान ने सभ्यता बनाई । जिसमें नियम और क़ानून के द्वारा सामाजिक anesthesia दिया गया ।

सब कुछ ठीक चल रहा था पर जैसे विडियो में हेरिंगल पक्षी के उदाहरण के द्वारा समझाया गया है , वैसे कुछ लोग हमारी natural instinct का फ़ायदा उठा कर मार्केट खड़ा करना जानते है । राज नेता, जंकफ़ूड कंपनी, सोसीयल मीडिया, फ़िल्म — ये सभी कुछ इसी तरह से चलता है ।

तो temporary happiness is hackable. but nobody is talking about overall wellbeing or equality.

फ़्रीडम की बात भी यहाँ पे एक्सप्लोर की गई की आख़िर में एविडँस बेजड ट्रूथ की ओर जाना पड़ेगा

We have stone age emotions, industrial age institutions and space age technology — how are we going to reconcile our intentions with a future that arrives faster than we can imagine it?

अब शिक्षा की बात करते है । शिक्षा का हेतु क्या है ?

बच्चों का बौधिक, भावात्मक और मनोक्रियात्मक विकास हो । बच्चे सर्जनात्मक और आलोचनात्मक तरीक़े से सोचना सीखे , प्रॉब्लम साल्विंग करना सीखे । सेंसिटिव बने , सेल्फ़ कंट्रोल सीखे। प्रसन्न रहें और चीजों — लोगों — दर्शन के साथ सही रिश्ता बनाना सीखे ।

बच्चे पे कोई विचार थोप न जाए पर वो परिस्थिति के हिसाब से , सिस्टम थिंकिंग करके , जीवन को संग्रंथित तरिके से देखते हुए सही — ग़लत का जजमेंट लेना सीखे ।

आपको मन चाही चीज़ मिल जाए वो फ़्रीडम नहि है । आप अपने कंडीशनिंग से जागृत हो के जजमेंट ले , अपने डर और कम्फ़र्ट , बायस में से बाहर आए वो रियल फ़्रीडम हे वो समझाया जाए ।

Content पे फ़ोकस ना कर के Content सेे सीखी जा सकती स्किल पे फ़ोकस करना ।

बिहेवियर सायंस , लर्निंग सायंस , कोगनेटिव सायंस , इवोल्यूसनरी बायोलोजि, हम हमारी बिलिफ कैसे बनाते है इन सब को ध्यान में रख के शिक्षा को देखा जाए ।

अब एसी शिक्षा की सामाजिक बदलाव में क्या भूमिका हो सकती है ?

में शिक्षा को सामाजिक बदलाव और उससे पहेले मानव विकास के टूल की तरह कैसे देखता हूँ ?

मेरे दर्शन में मानव पहेले है । मानव कैसे सोचता है , मानव कैसे अपना सच बनता है , मानव कैसे सीखता है , मानव दूसरे मानवो के साथ कैसे रिश्ता बनता है । हमारे natural instincts हमें कैसे सभ्य बनने से रोक रहे है । ये सब समझना और इस विज्ञान को शिक्षा में ले आना मुझे बेहत ज़रूरी लगता है । में बच्चों को आलोचनात्मक तरीक़े से सोचने का टूल और समवेदनशीलता देना ज़रूरी समझता हूँ ।

आंदोलन के बारेमें में क्या सोचता हूँ ? शिक्षा तो लम्बा रास्ता है , अभी के जो प्रश्न है उसके लिए आवाज़ उठाने के लिए क्या करना चाहिए ?

में मानता हूँ की अभी की समस्याओं के लिए और भविष्य की समस्याओं के लिए शिक्षा ही एक मात्र राश्ता है । में आंदोलन को भी शिक्षा का ही एक आयाम मानता हूँ ।

स्कूली शिक्षा के अलावा और भी आयाम हो सकते है ।

जैसे की में

  • बोर्ड गेम द्वारा बिहेवियर चेंज पे काम करना चाहूँगा ,
  • फ़िल्म के द्वारा वाइड ओडियंस तक पहोच के उनको कुछ मुद्दों पे रिफलेक्ट करवाना चाहूँगा,
  • यूथ स्टडी सर्कल या क्यूरीयोसिटी सर्कल जैसा कुछ शुरू कर के युवाओं का सिविक एँगेजमेंट बढ़ाना चाहूँगा
  • टेक्नोलोजी का उपयोग कर के समस्या के रिलेटेड डेटा पब्लिक डोमेन में लाना और सब को जागृत करना चाहूँगा
  • विज्ञान के ब्रेक थ्रू को सायंस क़ोम्यूनिकेशन द्वारा लोगों तक पहोचना चाहूँगा ।
  • बाहर की यात्रा के साथ साथ अंदर की यात्रा भी करूँगा ।

मेरे लिए ये सब शिक्षा है ।

पर तुरंत क्या होगा ?

कोई भी समस्या तुरंत नहि आती और कोई भी समस्या का अंत तुरंत नहि आता । आंदोलन में भी बिज्ञान की ज़रूरत पड़ेगी । आंदोलन में भी डेटा और एविडँस चाहिए । कोर्ट में सिर्फ़ चिल्लाने से कुछ सच नहि बन जाता ।

में मानता हूँ की हम खुद सेंसिटिव बने और अपने एक्शन ले । सब कुछ सफ़ेद या काला नहि है, ये चीज़ ध्यान में रखे ।

जगत में बहोत सारी समस्या है आपको किस पे काम करना है , आप उसमें कितना योगदान दे सकते हो , आपकी प्रयोरिटी आपको तय करनी होगी ।

शायद में आपने आप को बहुत अच्छे से अभिव्यक्त नहि कर पाया हूँ । बहुत सारे मुद्दे छूटे होंगे । मेरे कुछ बायसिस, मान्यताए ओर कंडीशनिंग इस में शामिल है । पर अभी के लिए ये लग रहा है ।

धन्यवाद :)

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